तेरी चिट्ठियां में अपनी छत्त पर
, छुप के पढ़ा करती थी
,
धुले कपड़ो की गीली खुशबू में
, मुस्कुराया करती थी
|
कितनी श्यामे हमने वहा
, बिना मिले बितायी थी
,
चिट्टी की एक तरफ़ा बातो से , दो
तरफ़ा महोब्बत निभाई थी |
याद है एक बार
, तुम्हारी गेंद मेरी खिड़की पे लगी थी,
पापा ने बड़े गुस्से से, वो गेंद
पकड़ी थी
|
दोस्तों ने खुशी ख़ुशी , तुम्हे डाट खाने भेजा था,
झुकी नज़रो से तुमने मुझे, सामने खड़ा देखा था
|
मैंने भी पापा के साथ
, तुम्हे दो बाते
सुनाई थी
,
“ध्यान से खेलो
” ये ज्ञान देके गेंद लौटाई थी
|
हल्का सा ही सही
, पर तुम्हारी उंगलियों ने मुझे छुआ
था,
एक पल के लिए हमने
, खुले आम प्यार का इज़हार किया था |
तेरी कितनी ही पतंगे कट
कर , मेरे आंगन में
आयी थी
,
भाई ने पर कभी उन्हें, वापस ना लौटाई थी
|
बुरा न मानना
, मैंने ही उसे मना किया था
,
तेरे आंगन से आयी चीज़ो को, लौटाने का मन न किया था
|
एक बात और है, जो तुम्हे पता नहीं
,
पर शायद अब, इन चीज़ो का वक़्त रहा नहीं
|
केह देती हु फिर भी तुम्हे
, क्योकि आज दिल जज़्बाती
है ,
वक़्त बहुत बीत गया
, पर याद तेरी आज भी आती है
|
तेरी चिट्ठियों
को में छत
पे ,छुप के आज भी पढ़ा
करती हु,
धुले कपड़ो की गीली खुशबू में
, मुस्कुराया करती हु
|
बिना मिले कभी कभी
, तुमसे बाते भी हो
जाती है
चिट्टी की एक तरफ़ा बातो से
,
अधूरी महोब्बत
की तम्मना पूरी हो जाती है
|
Priyanka Mathur